रविवार, 11 दिसंबर 2011

गृह त्‍याग


शिशु कीनाराम का बचपन ग्राम की आम्रावलियों एवं वानगंगा के किनारे बीतने लगा, आप धीरे धीरे सयाने होने लगे और प्रारंभिक शिक्षा के बाद आपके माता-पिता ने आपका विवाह बचपन में ही कात्‍यायनी देबी के साथ कर दिया गौना के पूर्व ही पत्‍नी का शिवलोकगमन हो गया जिससे आपके मन में तीब्र वैराग्‍य के भाव का उदय हुआ कु ही दिनो में माता और पिता का भी शिवलोक गमन हो गया ।

जन्‍म-सिद्ध एकाकी किनाराम तीर्थ यात्रा पर निकल पडे,वैष्‍णव आन्‍दोलन से उदासीन बहुत से वैष्‍णवो ने इनका आश्रय ग्रहण किया ।तीर्थाटन में बाबा किनाराम जहॉ-जहाॅ ठहरते गये उक्‍त आसन की पूजा के लिए उक्‍त वैष्‍णओ में से ही कुछ को उन्‍होने छोड दिया । बाबा किनाराम कभी वैष्‍णव नही हुये ।

आपके श्ष्यि सूुदाय में जो लोग राजसी ढंग से रहना चाहते थे उनको आपने वैष्‍णव मत की शिक्षा दी, जो वास्‍तविकता को जानना चाहते थे ओर सात्‍विक ढंग से रहना चाहते थे तथा किसी धर्म या जाति के प्रति दुराव नही रखते थे ,उनहें बाबा ने अघोर पद की दीक्षा दी ।

शनिवार, 10 दिसंबर 2011

जन्‍म


जन्‍म भारत खण्‍ड में उत्‍तर प्रदेश राज्‍य के चन्‍दौली जनपद अर्न्‍तगत सकलडीहा तहसील व चहनिया ब्‍लाक के रामगढ ग्राम में बिक्रम संवत 1658 के भाद्र मास के कृष्‍ण पक्ष में रघुबंशी क्षत्रिय कुल में पिता श्री अकबर सिह एवं माता सौभग्‍यवती मनसा देवी के गर्भ से एक ओजस्‍वी कुलभूषण की उत्‍पत्‍ती हुई । कहा जाता है कि जनम से पूर्व माता मनसा देवी को नंदी पर बैठे भगवान सदाशिव दीखे । नन्‍दी से उतर कर गर्भ-ग्रह में प्रवेश करते हुये सदाशिव को देखकर मनसा देवी जाग उठी उन्‍होने यह वृत्‍तान्‍त अपने पति को बताया ।अकबर सिह ने ग्राम पुरोहितो से इस स्‍वप्‍न का आशय पूछा अापसी विचार विमर्श के वाद ग्राम पुरोहितो ने अकबर सिह के निकट उपस्थित मनसा देबी को सम्‍बोधित करते हुये कहा ‘’आपके गर्भ में सदाशिव अवस्थित हुये है और नौ माह बाद जन्‍म लेगे’’।
जन्‍म के पूर्व से ही चतुर्मासा का बहाना बनाकर उस ग्राम में तीन महात्‍मा ठहरे हुये थे, जन्‍म के दो मुहुर्त बाद तीनो ही महात्‍मा अकबर सिह के दरवाजे पर उपस्थित हुये और उस जन्‍म –सिद्ध बालके के लिए शुभकामना प्रकट की स्‍नेह किया ओर उनमें से जो सबसे वयोवृद्ध थे उन्‍होने बालक को अपनी गोद में लिया और उसके कान में कुछ शब्‍द कहे जो दीक्षा मंत्र था । ब्रह्मा,विष्‍णु,और शिव के इन तीनो रूपो के आगमन और दर्शन के बाद बालक ने स्‍तन पान प्ररम्‍भ किया,जिससे सभी स्‍वजन आनन्‍द विभोर हो गये । बालक के चिरंजीवी होने के लिए एक परंपरा के अनुसार इनके पिता ने इन्‍हें बेचकर ‘’कीन’’ लिया, पुरोहितो के परामर्शानुसार इनका नाम ‘’कीनाराम’’ रखा गया, बैष्‍णव लोग इन्‍हें ‘’शिवाराम के नाम से जानते है।

माला 1


1-जिसने मान बडाई और सतुति को तिलांजली दे रखी है उसे खाक लपेटने अपने को तपाने या समाज सम्‍मान की आवश्‍यकता नही होती, वह तो जाति और कुल के लक्षणो यहॉ तक की प्रान्‍तीयता राष्‍टीयता और भाषा की सीमाओ बन्‍धनो संकीर्णताओ विशिष्‍टताओ से भी अपने को मुक्‍त रखता हैं ।
2-अपने आप में ही बहुत कुछ पाया जा सकता है जो न तो किसी इतिहास-साहित्‍य या शिलालेख में या ध्‍यान धरणा द्वारा प्रप्‍त किया जाता हैं ा वस्‍तुत: अपने आप अन्‍वेषण से जो प्राप्‍त हो सकता है वह अप्‍य माध्‍यमो से प्राप्‍त उपलव्धि से उच्‍चतर एवं श्रेयस्‍कर है । मै उसी प्राप्‍तब्‍य लक्ष्‍य की ओर अग्रसर होने के लिए प्रयत्‍नशील हूॅ

बुधवार, 7 दिसंबर 2011

माला 2


जिस शक्ति का हम चिन्‍तन कर रहे है वी कोई दूसरी बाहरी वस्‍तु नही हैा वह हमारे और आपके बीच का ही हैा हम शायद उसके सही रूप को पहचान नही पाते है या सही क्‍या है उसकी सही पूजा क्‍या है समझ नही पाते है ा उसकी आराधना यह धूप-दीप नैवेद्य,फल-फूल ही है तो यह हो ही नही सकता है, क्‍यो कि यह तो सामग्री है, कोई देवता तो है नही कि धूप और दीप और नैवेद्य आदि से तौल कर उसके माप दण्‍ड से, उसको ले लिया जाये ा बन्‍धूओ,हमारा उत्‍तम पवित्र विचार पवित्र भावनाये और पवित्र आचरण जब तक नही होगा तब तक वह पवित्रता और और उस पवित्रता का जो गुण है वह हमसे वंचित रह जायेगाा नही तो वह पवित्रता तो ढूढता रहा है,ढुढ रहा है कि हम मिले,प्राप्‍त करेंा
संक्षेप-हम वाहरी क्रिया कलापो से उस अज्ञात शक्ति को ज्ञात नही कर सकते वह हमारे आचरण का अभिन्‍न अंग हैा

माला3


यह रात्रि ही मॉ का स्‍वरूप है जिसकी अधियारी में से प्रकाश के दर्शन सुलभ होते है ा मॉ रात्रि रूप हैं और सभी जीवो को अपनी गोद में लेकर सुलाती है और उन्हे नव चेतना प्रदान करती है ा निशा है ा उसके आते ही सब दीप जल उठते हैा उषा उद्यमशील बनाती है ा मनुष्‍य ही नही, संसार के सभी थके प्रणियो को नवचेतना निशा देती हैा

अघोरान्‍नामपरौमंत्र:नास्तितत्‍वमगुरौपरम

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