अघोरवचन
2-अपने आप में ही बहुत कुछ पाया जा सकता है जो न तो किसी इतिहास-साहित्य या शिलालेख में या ध्यान धरणा द्वारा प्रप्त किया जाता हैं ा वस्तुत: अपने आप अन्वेषण से जो प्राप्त हो सकता है वह अप्य माध्यमो से प्राप्त उपलव्धि से उच्चतर एवं श्रेयस्कर है । मै उसी प्राप्तब्य लक्ष्य की ओर अग्रसर होने के लि.
अघोरवचन
1-जिसने मान बडाई और सतुति को तिलांजली दे रखी है उसे खाक लपेटने अपने को तपाने या समाज सम्मान की आवश्यकता नही होती, वह तो जाति और कुल के लक्षणो यहॉ तक की प्रान्तीयता राष्टीयता और भाषा की सीमाओ बन्धनो संकीर्णताओ विशिष्टताओ से भी अपने को मुक्त रखता हैं .
अघोरवचन
जिस शक्ति का हम चिन्तन कर रहे है वी कोई दूसरी बाहरी वस्तु नही हैा वह हमारे और आपके बीच का ही हैा हम शायद उसके सही रूप को पहचान नही पाते है या सही क्या है उसकी सही पूजा क्या है समझ नही पाते है ा उसकी आराधना यह धूप-दीप नैवेद्य,फल-फूल ही है तो यह हो ही नही सकता है, क्यो कि यह तो सामग्री .
अघोरवचन
यह रात्रि ही मॉ का स्वरूप है जिसकी अधियारी में से प्रकाश के दर्शन सुलभ होते है ा मॉ रात्रि रूप हैं और सभी जीवो को अपनी गोद में लेकर सुलाती है और उन्हे नव चेतना प्रदान करती है ा निशा है ा उसके आते ही सब दीप जल उठते हैा उषा उद्यमशील बनाती है ा मनुष्य ही नही.
अघोरवचन
औघड-अघेरेश्वर वही होते है जिनमें अपार करूणा होती है,संवेदना होती है,जो अघ़ण होते हैंा किसी तरह के भेद-भाव तथा घणा से दूर रहकर औघड-अघोरेश्वर सभी के हित तथा सुख के लिए और समाज तथा राष्ट की सुव्यवस्था के लिए सतत चिंतित तथा प्रयत्न शील रहते है ा यह लोग श्वपच बन्धुओ के साथ भी रहते हैं और खाते पीते हैं ा यह आत्म मे, आत्म बुद्वि में विश्वास र.