शनिवार, 10 दिसंबर 2011

माला 1


1-जिसने मान बडाई और सतुति को तिलांजली दे रखी है उसे खाक लपेटने अपने को तपाने या समाज सम्‍मान की आवश्‍यकता नही होती, वह तो जाति और कुल के लक्षणो यहॉ तक की प्रान्‍तीयता राष्‍टीयता और भाषा की सीमाओ बन्‍धनो संकीर्णताओ विशिष्‍टताओ से भी अपने को मुक्‍त रखता हैं ।
2-अपने आप में ही बहुत कुछ पाया जा सकता है जो न तो किसी इतिहास-साहित्‍य या शिलालेख में या ध्‍यान धरणा द्वारा प्रप्‍त किया जाता हैं ा वस्‍तुत: अपने आप अन्‍वेषण से जो प्राप्‍त हो सकता है वह अप्‍य माध्‍यमो से प्राप्‍त उपलव्धि से उच्‍चतर एवं श्रेयस्‍कर है । मै उसी प्राप्‍तब्‍य लक्ष्‍य की ओर अग्रसर होने के लिए प्रयत्‍नशील हूॅ

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अघोरान्‍नामपरौमंत्र:नास्तितत्‍वमगुरौपरम

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