रविवार, 11 दिसंबर 2011

गृह त्‍याग


शिशु कीनाराम का बचपन ग्राम की आम्रावलियों एवं वानगंगा के किनारे बीतने लगा, आप धीरे धीरे सयाने होने लगे और प्रारंभिक शिक्षा के बाद आपके माता-पिता ने आपका विवाह बचपन में ही कात्‍यायनी देबी के साथ कर दिया गौना के पूर्व ही पत्‍नी का शिवलोकगमन हो गया जिससे आपके मन में तीब्र वैराग्‍य के भाव का उदय हुआ कु ही दिनो में माता और पिता का भी शिवलोक गमन हो गया ।

जन्‍म-सिद्ध एकाकी किनाराम तीर्थ यात्रा पर निकल पडे,वैष्‍णव आन्‍दोलन से उदासीन बहुत से वैष्‍णवो ने इनका आश्रय ग्रहण किया ।तीर्थाटन में बाबा किनाराम जहॉ-जहाॅ ठहरते गये उक्‍त आसन की पूजा के लिए उक्‍त वैष्‍णओ में से ही कुछ को उन्‍होने छोड दिया । बाबा किनाराम कभी वैष्‍णव नही हुये ।

आपके श्ष्यि सूुदाय में जो लोग राजसी ढंग से रहना चाहते थे उनको आपने वैष्‍णव मत की शिक्षा दी, जो वास्‍तविकता को जानना चाहते थे ओर सात्‍विक ढंग से रहना चाहते थे तथा किसी धर्म या जाति के प्रति दुराव नही रखते थे ,उनहें बाबा ने अघोर पद की दीक्षा दी ।

अघोरान्‍नामपरौमंत्र:नास्तितत्‍वमगुरौपरम

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