जन्म भारत खण्ड में उत्तर प्रदेश राज्य के चन्दौली जनपद अर्न्तगत सकलडीहा तहसील व चहनिया ब्लाक के रामगढ ग्राम में बिक्रम संवत 1658 के भाद्र मास के कृष्ण पक्ष में रघुबंशी क्षत्रिय कुल में पिता श्री अकबर सिह एवं माता सौभग्यवती मनसा देवी के गर्भ से एक ओजस्वी कुलभूषण की उत्पत्ती हुई । कहा जाता है कि जनम से पूर्व माता मनसा देवी को नंदी पर बैठे भगवान सदाशिव दीखे । नन्दी से उतर कर गर्भ-ग्रह में प्रवेश करते हुये सदाशिव को देखकर मनसा देवी जाग उठी उन्होने यह वृत्तान्त अपने पति को बताया ।अकबर सिह ने ग्राम पुरोहितो से इस स्वप्न का आशय पूछा अापसी विचार विमर्श के वाद ग्राम पुरोहितो ने अकबर सिह के निकट उपस्थित मनसा देबी को सम्बोधित करते हुये कहा ‘’आपके गर्भ में सदाशिव अवस्थित हुये है और नौ माह बाद जन्म लेगे’’।
जन्म के पूर्व से ही चतुर्मासा का बहाना बनाकर उस ग्राम में तीन महात्मा ठहरे हुये थे, जन्म के दो मुहुर्त बाद तीनो ही महात्मा अकबर सिह के दरवाजे पर उपस्थित हुये और उस जन्म –सिद्ध बालके के लिए शुभकामना प्रकट की स्नेह किया ओर उनमें से जो सबसे वयोवृद्ध थे उन्होने बालक को अपनी गोद में लिया और उसके कान में कुछ शब्द कहे जो दीक्षा मंत्र था । ब्रह्मा,विष्णु,और शिव के इन तीनो रूपो के आगमन और दर्शन के बाद बालक ने स्तन पान प्ररम्भ किया,जिससे सभी स्वजन आनन्द विभोर हो गये । बालक के चिरंजीवी होने के लिए एक परंपरा के अनुसार इनके पिता ने इन्हें बेचकर ‘’कीन’’ लिया, पुरोहितो के परामर्शानुसार इनका नाम ‘’कीनाराम’’ रखा गया, बैष्णव लोग इन्हें ‘’शिवाराम के नाम से जानते है।
आशीष त्रिपाठी का काव्य संग्रह शान्ति पर्व
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शान्ति पर्व पढ़ गया। किसी पुस्तक को पढ़ कर चुपचाप मन ही मन संवाद की आदत है।
पहली बार यह बातचीत बाहर आने को मचली।...
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7 महीने पहले
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