सोमवार, 5 दिसंबर 2011

अघेार दर्शन एक परिचय

अघेार शब्‍द अ व घोर शब्‍दो से मिलकर बना है घोर शब्‍द का अर्थ है कि जो अपने अति को न प्रदर्शित करता हो अर्थात सम्‍यक हो,साधना में क्रिया व स्‍वरूप दोनो की सम्‍यता ही अघोर की उत्‍पत्ति करती है, इसी को अभेद भी कहा जाता है,सत्‍य में भेद रहित साधना अघोरी ही करता है,एक विकराल रूपधारी औघड जहां प्रक़ति की विकरालता पर विजय पाने का प्रयास करता है वही एक सौम्‍य रूप धारी औघड प्रकति की सौम्‍यता से समंजस्‍य स्‍थापित करने का प्रयास करता है,एक औघड की साधना घोर होती है क्‍यो कि इस घोर की दुनिया के पार उसे अघोर की सत्‍ता पर विजय पाना होता है,उसकी सधना सर्वागी होती है प्रकति व परा के सभी अंगो के साथ वह सामंजस्‍य स्‍थपित करने का प्रयास करता है,साधारण शब्‍दो में समाज को जो पसन्‍द होता है और समाज को जो नही पसन्‍द होता हैं,मानव जीवन के लिए जो सुखकारी है और मानव जीवन...

अघोरान्‍नामपरौमंत्र:नास्तितत्‍वमगुरौपरम

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