बुधवार, 7 दिसंबर 2011

माला 2


जिस शक्ति का हम चिन्‍तन कर रहे है वी कोई दूसरी बाहरी वस्‍तु नही हैा वह हमारे और आपके बीच का ही हैा हम शायद उसके सही रूप को पहचान नही पाते है या सही क्‍या है उसकी सही पूजा क्‍या है समझ नही पाते है ा उसकी आराधना यह धूप-दीप नैवेद्य,फल-फूल ही है तो यह हो ही नही सकता है, क्‍यो कि यह तो सामग्री है, कोई देवता तो है नही कि धूप और दीप और नैवेद्य आदि से तौल कर उसके माप दण्‍ड से, उसको ले लिया जाये ा बन्‍धूओ,हमारा उत्‍तम पवित्र विचार पवित्र भावनाये और पवित्र आचरण जब तक नही होगा तब तक वह पवित्रता और और उस पवित्रता का जो गुण है वह हमसे वंचित रह जायेगाा नही तो वह पवित्रता तो ढूढता रहा है,ढुढ रहा है कि हम मिले,प्राप्‍त करेंा
संक्षेप-हम वाहरी क्रिया कलापो से उस अज्ञात शक्ति को ज्ञात नही कर सकते वह हमारे आचरण का अभिन्‍न अंग हैा

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अघोरान्‍नामपरौमंत्र:नास्तितत्‍वमगुरौपरम

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